1857 के विद्रोह के पीछे के कारण (Revolt Of 1857 factor in Hindi)
1857 के विद्रोह के पीछे के कारण
1857 के विद्रोह के पीछे के राजनीतिक कारण :
- सहायक संधि (वेलेजली ) > सबसे पहले हैदराबाद के निजाम को सहायक संधि के अंतर्गत संधि करनी पड़ी। इस संधि के अंतर्गत एक शासक के लिए यह अनिवार्य था कि – वह कंपनी की सेना को अपने पास रखे तथा उसके रखरखाव का खर्च शासक द्वारा ही भुगतान किया जाए तथा साथ ही इस संधि के अंतर्गत अन्य यूरोपीय देशों के साथ संबंध स्थापित करने पर रोक लगाई गयी थी।
- बहादुर शाह जफर के निधन के पश्चात, अंग्रेजों ने उनके वंशजों को ‘राजा” के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया (केवल
आसार ” के रूप में माना जाने लगा)। सिक्कों पर से उनके नाम को भी हटा दिया गया। - डलहोजी का “व्यपगत का सिद्धांत” > राज्यों को हड़पा जाना तथा संप्रभुता का नुकसान।
- पेंशन पर रोक > नाना साहब ने अपने पिता के निधन के बाद अपने पिता की ओर से पेंशन का दावा किया। हालांकि कंपनी के द्वारा इसे मानने से इनकार कर दिया गया।
- 4856 में अवध को हड़प लिया जाना > इसने आम लोगों में बहुत आक्रोश तथा साथ ही स्थानीय शासकों में दहशत भी पैदा कर दी। अपने शासक के अपमान ने लोगों को विद्रोह में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया।
1857 के विद्रोह के पीछे के आर्थिक कारण
- किसानों का असंतोष > भूस्वामियों के द्वारा असहा/दमनकारी कृषि ऋण तथा उच्च भूमि राजस्व और भीख मांगने जैसी
प्रतिरोधी कृषि प्रथाओं के कारण किसान भी असंतुष्ट थे। - स्थायी बंदोबस्ती > जमींदारी व्यवस्था से भी मदद नहीं मिली तथा यह साहूकारों के वर्ग के उदय तथा किसानों की ऋणग्रस्तता में वृद्धि में हुई। यह “अनुपस्थित जमींदारी व्यवस्था” तथा “काश्तकारी” तथा “बटाईदारी” के उदय की ओर ले गया।
- धन का अपवाह > इसपर बाद में दादाभाई नौरोजी (भारत में गरीबी और गैर-ब्रिटिश शासन – पावर्टी ऐंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया) और आर सी दत्त (भारत का आर्थिक इतिहास, द्वारा प्रकाश डाला गया था तथा यह महसूस करवाया गया कि अंग्रेज़ी शासन भारतीयों को नुकसान पहुंचा रहा है तथा भारतीय धन-संपदा का अपवाह धीरे-धीरे ब्रिटेन की ओर हो रहा है।
- पारंपरिक तथा हस्तशिल्प उद्योगों का विनाश।
1857 के विद्रोह के पीछे के धार्मिक तथा सांस्कृतिक कारण
- 4850 में, सरकार के द्वारा एक कानून बनाया गया जिसमें ईसाई धर्म में धर्मांतरित लोगों को उनकी विरासत में मिली संपत्ति का
उत्तराधिकारी बनाये जाने का प्रावधान था। - ईसाई मिशनरियों को बढ़ावा > धार्मिक मोर्चे पर भी भारतीयों ने अंग्रेज़ो की नीतियों का विरोध किया। इसके अलावा, अंग्रेजों ने भारतीय समाज में सुधार के लिए, ईसाई धर्म को बढ़ावा दिया, इससे लोगों में भी नाराजगी उत्पन्न हुई और इसे उनलोगों ने अपने धर्म पर हमले के रूप में देखा। धर्मातरण को कानूनी रूप देने के लिए “धार्मिक विकलांगता अधिनियम’, 4856 को पारित किया गया।
- चित 4 732/ न पारित किया गया जिसके तहत विदेशों में भी सेवा करने की आवश्यकता होती थी
- सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी गई थी (विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 4856) और 588 को धर्म विरोधी अभियान के रूप में देखा जाने लगा था। की घुसपैठ को उनकी धार्मिक मान्यताओं में अनुचित हस्तक्षेप के रूप में देखा गया।
1857 के विद्रोह के पीछे के प्रशासनिक कारण
सिपाहियों के बीच असंतोष > कंपनी के सिपाही भी असंतुष्ट थे। वे अपने वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तों से नाखुश थे। ग्रामीण इलाकों
में होने वाली घटनाओं पर भी सिपाही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे। उनमें से कई किसान थे और उनके परिवार गांवों में रहते थे। इसलिए किसानों का का ही सिपाहियों के बीच भी फैल गया।
नस्लीय प्रकृति और केवल नीच/तुच्छ नौकरियों तक उनकी पहुंच।
विदेशी शासन > यह तथ्य कि अंग्रेज़ी शासन विदेशी है, इससे भारतीयों के स्वाभिमान को ठेस पहुंच रही थी।
1857 के विद्रोह के पीछे के तत्कालिक वजह
- एनफील्ड बंदूकों के बारूद में हड्डी मिले होने तथा कारतूसों में गाय/सुअर की चर्बी मिले होने की अफवाह।
- सिपाहियों के साथ बुरा बर्ताव होना।