आत्महत्या के प्रमुख कारण | Major Causes of Suicide in Hindi
आत्म हत्या के कारण
आत्महत्या की विवेचना में दुर्थीम ने अनेक उन कारणों का उल्लेख किया जिनके आधार पर समय-समय पर आत्महत्या की विवेचना की जाती रही थी।
दुर्थीम से पहले मनोवैज्ञानिकों, जीववादियों तथा भौगोलिकवादियों ने यह स्पष्ट किया था कि व्यक्ति कुछ मानसिक, जैविकीय तथा प्राकृतिक दशाओं के प्रभाव से आत्महत्या करते हैं।
इसी आधार पर आत्महत्या के विभिन्न प्रकारों, जैसे- उन्मादपूर्ण आत्महत्या, संवेगात्मक आत्महत्या, निराशापूर्ण आत्महत्या तथा प्रेतबाधा आत्महत्या आदि का भी उल्लेख किया गया।
दुर्शीम ने ऐसे सभी कारणों की निरर्थकता को स्पष्ट करते हुए आत्महत्या की सामाजिक कारणों के आधार पर व्याख्या की। इसलिए यह आवश्यक है कि आत्महत्या के मनोवैज्ञानिक, जैविकीय तथा भौगोलिक कारणों पर दुर्थीम के विचारों को समझने के साथ उन सामाजिक दशाओं का विस्तार से उल्लेख किया जाये तो
दुर्थीम के अनुसार आत्महत्या के वास्तविक कारण हैं
- मनोवैज्ञानिक दशाएँ
- जैविकीय दशाएँ
- भौगोलिक दशाएँ
आत्महत्या का प्रमुख कारण एक
मनोवैज्ञानिक दशाएँ (Psychological Conditions)
मनोवैज्ञानिक दशाओं में विभिन्न विद्वानों ने स्वभाव सम्बन्धी विशेषताओं, मानसिक बीमारियों, संवेगात्मक अस्थिरता, उन्माद तथा पातक की भावना आदि को आत्महत्या के प्रमुख कारणों के रूप में स्पष्ट किया था। दुर्थीम के अनुसार इनमें से किसी भी कारण के आधार पर आत्महत्या की विवेचना नहीं की जा सकती।
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(अ) स्वभाव सम्बन्धी विशेषताएँ
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ व्यक्तियों का स्वभाव आत्महत्या के लिए अधिक अनुकूल होता है। जो लोग जीवन में बहुत अधिक आराम की कामना करते हैं. अधिक भावुक होते हैं, अधिक मनोरंजन पसन्द करते हैं तथा स्वभाव से अन्तर्मुखी होते हैं, उनके शान्त जीवन में थोड़ा भी व्यवधान पैदा होने से वे विचलित हो जाते हैं।
आत्महत्या इसी दशा का परिणाम है। दुर्थीम ने अपने अध्ययन में यह पाया कि व्यक्तिगत स्वभाव तथा आत्महत्या के बीच कोई सह-सम्बन्ध नहीं है।
आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों में अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी दोनों तरह के स्वभाव वाले लोग होते हैं। दूसरी ओर, संवेग और भावना स्त्रियों के जीवन में अधिक होती है, जबकि आत्महत्या करने वाले लोगों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों का प्रतिशत अधिक है।
(ब) मनोविकार
मनोविकार इस तरह की मानसिक बीमारी है जो विभिन्न रूपों में आत्महत्या के लिए उत्तरदायी होती है। उदाहरण के लिए, व्यर्थ की चिन्ता से घिरे रहना, प्रत्येक दशा में निराशा अनुभव करना, स्नायुदोष का होना, स्वयं कोई निर्णय न ले पाना, बहुत जल्दी दुःखी या प्रसन्न हो जाना आदि विभिन्न प्रकार के मनोविकार है।
यह मनोविकार जब व्यक्ति के जीवन को बहुत असन्तुलित बना देते हैं तो वह अपने जीवन को बेकार समझकर आत्महत्या की ओर मुड़ जाता है। दुर्थीम ने यह सिद्ध कि या कि मनोविज्ञान स्वयं आत्महत्या का कारण नहीं होते बल्कि स्वयं मनोविकार भी कुछ विशेष सामाजिक दशाओं का परिणाम होते हैं।
इसका अर्थ है कि मनोविकार आत्महत्या के लिए प्रेरणा तो दे सकते हैं लेकिन आत्महत्या के वास्तविक कारण सामाजिक दशाओं में ही खोजे जा सकते हैं।
(स) संवेगात्मक अस्थिरता
मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि आत्महत्या करने वाले लोगों में से अधिकांश लोग वे होते हैं जो स्थिर विचारों के नहीं होते, तर्क के आधार पर कोई निर्णय नहीं ले पाते तथा जिनकी सोच नकारात्मक होती है। ऐसे व्यक्ति सभी दूसरे लोगों को अपना
विरोधी और आलोचक समझने लगते हैं। यही दशा उन्हें आत्महत्या करने की प्रेरणा देती है। दुर्थीम का कथन है कि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार युवावस्था में संवेगात्मक अस्थिरता व्यक्ति में सबसे कम होती है लेकिन बच्चों और वृद्धों की तुलना में युवा वर्ग के लोग अधिक आत्महत्या करते हैं
इसका तात्पर्य है कि संवेगात्मक अस्थिरता आत्महत्या का प्रमुख कारण नहीं है।
(द) उन्माद
उन्माद एक ऐसा मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति अपनी किसी भी इच्छा के तनिक भी अपूर्ण रह जाने की दशा में एकाएक असामान्य व्यवहार करने लगता है।
उसकी मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि व्यक्ति असामान्य क्रियाएँ करने लगता है। अक्सर उन्माद की दशा में अकेला होने पर व्यक्ति आत्महत्या का शिकार हो जाता है। दुर्थीम के अनुसार उन्माद पूरी तरह एक वैयक्तिक और काल्पनिक विशेषता है जिसके आधार पर आत्महत्या की व्याख्या नहीं की जा सकती।
(य) पातक की भावना
यह एक ऐसी भावना है जो किसी कुकृत्य को करने के बाद व्यक्ति में स्वयं अपने प्रति घृणा की भावना उत्पन्न कर देती है।
पातक की दशा में व्यक्ति हर समय अपने प्रति सशंकित रहने लगता है, वह अनिद्रा से घिर जाता है तथा उसमें इतनी अधिक हीनता पैदा हो जाती है कि धीरे-धीरे अकारण वह पूरे समूह को अपने विरुद्ध समझने लगता है।
यही दशा उसे आत्महत्या की ओर ले जाती है। दुर्थीम पातक को एक मनोवैज्ञानिक दशा न मानकर एक सामाजिक दशा के रूप में देखते हैं क्योंकि पातक का कारण आन्तरिक नहीं बल्कि समाज की वाह्य दशाएँ होती है।
कुछ मनोवैज्ञानिक मद्यपान को भी एक मनोवैज्ञानिक कारण मानते हुए इसके आधार पर आत्महत्या की विवेचना करते हैं लेकिन दुर्थीम ने यह सिद्ध किया कि स्पेन तथा फ्रांस जैसे देशों में जहाँ शराब का सबसे अधिक सेवन किया जाता है, वहाँ यूरोप के अनेक दूसरे देशों की तुलना में आत्महत्या की दर कम है।
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आत्महत्या का प्रमुख कारण दो
जैविकीय दशाएँ – Biological Conditions in hindi
दुर्शीम ने अनेक ऐसी मानसिक और जैविकीय दशाओं का भी उल्लेख किया जिन्हें अक्सर आत्महत्या का कारण मान लिया जाता है।
जीववादी यह मानते हैं कि एक विशेष शारीरिक रचना तथा वंशानुक्रम से प्राप्त होने वाली विशेषताएं भी आत्महत्या की प्रेरणा देती है। इस दृष्टिकोण से दोषपूर्ण आनुवंशिक विशेषताएं, असामान्य शारीरिक रचना तथा प्रजातीय लक्षण वे प्रमुख जैविकीय कारक है जिनका आत्महत्या से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।
(अ) दोशपूर्ण आनुवंशिक विशेषताएं
जीववादियों का विश्वास है कि माता-पिता के अच्छे और बुरे सभी गुणों का वाहकाणुओं के द्वारा उनकी सन्तानों में संरक्षण होने की सदैव सम्भावना रहती है।
माता-पिता में यदि स्नायु दोष या विभिन्न प्रकार के मनोविकार होते हैं तो अक्सर यह दोष उनकी सन्तानों में भी आ जाते हैं। इससे बच्चों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है।
दुर्थीम ने आनुवंशिकता अथवा पैतृकता के आधार पर आत्महत्या की प्रवृत्ति का खण्डन किया। उनके अनुसार आनुवंशिकता पूरी तरह एक जन्मजात और आन्तरिक विशेषता है जिसके आधार पर आत्महत्या जैसे वाह्य व्यवहार की विवेचना नहीं की जा सकती।
(ब) असामान्य शारीरिक रचना
जीववादी यह भी मानते हैं कि जिन व्यक्तियों की शारीरिक रचना असामान्य होती है, उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक देखने को मिलती है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति बहुत अधिक भहे, मोटे, नाटे, अपंग अथवा विकलांग होते हैं, अक्सर अपने जीवन के प्रति उनमें अधिक रूचि नहीं होती।
शारीरिक विकृतियाँ उनके विचारों को भी असन्तुलित बना देती है जिसका परिणम बहुधा आत्महत्या के रूप में देखने को मिलता है। दुर्थीम ने इस आधार को भी अस्वीकार करते हुए कहा कि असामान्य शारीरिक रचना तब तक आत्महत्या का कारण नहीं हो सकती
जब तक व्यक्ति का जीवन शेष समाज से बिल्कुल अलग न हो जाये। इसका तात्पर्य है कि असामान्य शारीरिक रचना स्वयं आत्महत्या का कारण नहीं होती बल्कि सामाजिक दशाओं के सन्दर्भ में ही उनके प्रभाव को समझा जा सकता है।
(स) प्रजातीय लक्षण
अनेक विद्वानों ने प्रजातीय लक्षणों के आधार पर भी आत्महत्या की व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। सामान्य निष्कर्ष यह दिया जाता है कि गोरी प्रजाति की तुलना में काली प्रजाति के लोगों में आत्महत्या की दर अधिक होती है।
इससे प्रजातीय लक्षणों और आत्महत्या का सहसम्बन्ध स्पष्ट होती है। दुर्थीम ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि कुछ समय पहले तक जिन प्रजातीय समूहों में आत्महत्या की दर अधिक थी, उनकी सांस्कृतिक दशाओं में परिवर्तन हो जाने स अब उनमें आत्महत्या की दर कम होती जा रही है।
इससे भी यह स्पष्ट होता है कि आत्महत्या का कारण जैविकीय दशाओं में नहीं बल्कि सामाजिक दशाओं में ही ढूँढा जा सकता है।
आत्महत्या का प्रमुख कारण तीन
भौगोलिक दशाएँ – Geographical Conditions in hindi
भौगोलिकवादी यह मानते हैं कि आत्महत्या तथा भौगोलिक दशाओं के बीच एक प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। भौगोलिक दशाओं का सम्बन्ध एक विशेष प्रकार की जलवायु, ऋतु-परिवर्तन तथा मौसमी तापमान में होने वाले उतार-चढ़ाव से है।
डी0 गूरे, वैगनर, मॉण्टेस्क्यू. डेक्सटर तथा फेरी आदि वे प्रमुख भौगोलिकवादी हैं जो अनेक दूसरे मानव व्यवहारों की तरह आत्महत्या को भी भौगोलिक दशाओं का परिणाम मानते हैं।
दुर्थीम के विचारों के सन्दर्भ में आत्महत्या तथा भौगोलिक कारकों के सम्बन्ध को जानने से यह स्पष्ट हो जायेगा कि भौगोलिकवादियों के कथन को उपयुक्त नहीं कहा जा सकता।
(अ) जलवायु तथा आत्महत्या
कुछ भौगोलिकवादी यह मानते हैं कि जलवायु तथा आत्महत्या के बीच एक प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। यही कारण है
कि जलवायु में परिवर्तन होने के साथ आत्महत्या की दर में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। उनके अनुसार समशीतोष्ण जलवायु में आत्महत्याएँ अधिक होती हैं।
इसके विपरीत, अधिक गर्म या अधिक ठण्डी जलवायु में आत्महत्या की घटनाएँ तुलनात्मक रूप से कम होती है। इस सम्बन्ध में दुर्थीम ने लिखा है, “आत्महत्या की दर में पायी जाने वाली भिन्नता की खोज जलवायु के रहस्यात्मक प्रभाव में नहीं बल्कि विभिन्न देशों में पायी जाने वाली सभ्यता की प्रकृति में करना आवश्यक है।”
इसका तात्पर्य है कि भौगोलिकवादियों ने जिस समशीतोष्ण जलवायु को अधिक आत्महत्याओं का कारण मान लिया है, उसका कारण वास्तव में इस जलवायु में विकसित होने वाली कुछ विशेष प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक दशाएं है।
इटली का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि यहाँ क विभिन्न भागों में समय-समय पर आत्महत्या की दर में काफी परिवर्तन होता रहा, जबकि वहाँ की जलवायु में किसी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ।
इससे यह प्रमाणित होता है कि आत्महत्या की घटनाओं की खोज सामाजिक और सांस्कृतिक दशाओं में ही की जा सकती है।
(ब) ऋतु-परिवर्तन
मॉण्टेस्क्यू ने ऋतु-परिवर्तन और आत्महत्या के सहसम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए लिखा कि यूरोप में गर्मी में आत्महत्या की दर सबसे अधिक होती है और इसमें भी मई व जून का समय सबसे अधिक घातक होता है। बसन्तु ऋतु में आत्महत्या की दर साधारण होती है तथा सर्दियों में इसमें बहुत कमी हो जाती है।
इस प्रकार आत्महत्या की दर में होने वाला परिवर्तन ऋतु-परिवर्तन के साथ बहुत कुछ नियमित रूप में देखने को मिलता है। दुर्थीम ने ऐसे निष्कर्षों को अस्वीकार करते हुए यह तर्क दिया कि आत्महत्या की दर की भिन्नता ऋतु-परिवर्तन से सम्बन्धित नहीं है बल्कि व्यक्ति उस समय अपने जीवन को त्यागना अधिक पसन्द करते हैं जब मौसम उनके जीवन को सबसे कम प्रतिकूल रूप से प्रभावित
कर रहा होता है। यह ऋतु-परिवर्तन का सामाजिक सन्दर्भ है तथा यही सन्दर्भ कुछ सीमा तक आत्महत्या की दर से सम्बन्धित है।
(स) तापमान
फेरी जैसे एक प्रमुख भौगोलिकवादी ने यह निष्कर्ष दिया कि तापमान तथा आत्महत्या के बीच एक प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। उन्होंने अपने अध्ययन में यह पाया कि गर्मियों में जब तापमान अधिक होता है, तब आत्महत्या की घटनाओं में भी वृद्धि हो जाती है।
दुर्थीम ने ऐसे निष्कर्षों की आलोचना करते हुए लिखा कि तापमान के थर्मामीटर का आत्महत्या में कोई सम्बन्ध नहीं है। यह सच है कि जब तापमान अधिक होता है तो आत्महत्याएँ अधिक होती है लेकिन इसका कारण यह है गर्मियों के मौसम में व्यक्ति स्वयं को अधिक अकेला महसूस करता है जिसके फलस्वरूप आत्महत्या की दर में वृद्धि हो जाती है।
इस प्रकार दुर्थीम ने मनोवैज्ञानिक, जैविकीय तथा भौगोलिक दशाओं के आधार पर आत्महत्या की विवेचना को भ्रामक बताते हुए सामाजिक दशाओं को ही आत्महत्या की घटनाओं के लिए उत्तरदायी माना।