सत्य क्या है – Mahatma Gandhi’s Views on Truth in Hindi
सत्य की अवधारणा गांधीजी के अनुसार
गांधीजी के अनुसार सत्य ही ईश्वर है परंतु प्रश्न अब यह उठता है कि वह ईश्वर यानी कि जो सत्य है और इसकी प्राप्ति जीवन का उद्देश्य है वह “है क्या?”
गांधीजी के मतानुसार सत्य सत शब्द से निकला है इसका अर्थ है अस्तित्व या होना सत्य को ईश्वर या ब्रह्म कहने का यह कारण है कि सत्य वही है जिसकी सत्यता होती है जो सदा टिका रहता है।
ब्रह्म या परमात्मा की सत्ता तीनों कालों में बनी रहती है अतः यह सत्य है। गांधीजी अपने जीवन का सत्य ही शुद्ध करना समझते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम मेरे सत्य के प्रयोग रखा है।
सामान्यता सत्य शब्द का अर्थ केवल सच बोलना ही समझा जाता है लेकिन गांधी जी ने सत्य का व्यापक तम अर्थ लेते हुए बार-बार यह आग्रह किया है कि विचार में, वारी में और आचार में सत्य का होना ही सत्य है। गांधीजी की दृष्टि में सत्य की आराधना ही सच्ची भक्ति है।
गांधीजी के अनुसार दैनिक जीवन में सत्य सापेक्ष है किंतु सापेक्ष सत्य के माध्यम से एक निरपेक्ष सत्य पर पहुंचा जा सकता है और यह निरीक्षक यही जीवन का चरम लक्ष्य है। इसकी प्राप्ति ही मनुष्य का परम धर्म है।
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गांधी जी के सत्य के परिवेश में केवल व्यक्ति नहीं आता है अभी तू इसमें समूह और समाज का भी समावेश है वे चाहते हैं कि संपूर्ण सत्य का पालन धर्म, राजनीति, अर्थनीति, परिवार नीति सब में होना चाहिए।
व्यक्ति दूसरों को आघात पहुंचाता है सत्य का उल्लंघन करता है। हिंसा असत्य है क्योंकि जीवन में एकता और पवित्रता के विरुद्ध है इसलिए जीवन में अहिंसा का पालन करना सत्य के उपासक का सबसे बड़ा कर्तव्य है
गांधी के अनुसार यह एक बड़ा कठिन प्रश्न है किंतु अपने लिए सत्य वह है जो तुम्हारी अंतरात्मा कहती है वही सत्य है पूर्व राम सत्य को व्यक्त करने के लिए अंतरात्मा शुद्ध होनी चाहिए क्योंकि शुद्ध अंतरात्मा की बाड़ी ही सत्य हो सकती है।
सत्य की प्राप्ति के लिए सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का पालन करना चाहिए।
सत्य का शाब्दिक अर्थ चोरी ना करना मन वचन और कर्म से किसी दूसरे की संपत्ति को चुराने की इच्छा ना करना।
राजनीति में सत्य के पूर्व पालन का उनका नवीन प्रयोग तो विश्व इतिहास के लिए एक अविस्मरणीय घटना है