गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा – Mahatama Gandhi And South Africa In Hindi
गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
Mahatama Gandhi And South Africa In Hindi
दक्षिण अफ्रीका की तैयारी – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
गांधी 1893 में एक व्यापारी दादा अब्दुल्ला के कानूनी वकील के रूप में सेवा देने के लिए नटाल के डरबन बंदरगाह पर पहुंचे वह स्वयं स्वीट अब्दुल्ला ने लेने आए और एक करार के चलते उन्हें 1 वर्ष के लिए अफ्रीका बनाया जिसमें उनकी प्रथम श्रेणी की यात्रा , रहना, खाना और 105 पौंड मासिक देने का करार हुआ।
शेख अब्दुल्ला खान का केस प्रतिवादी सैयद हाजी खान से चल रहा था जो कि 40000 पौंड का लेनदेन का था उसे लड़ने के लिए अब्दुल्लाह खान की कंपनी ने 1 वर्ष के लिए महात्मा गांधी को अफ्रीका बुलाया और महात्मा गांधी इस केस को लड़ने के लिए डरबन पहुंचे।
वहां गांधी ईसाई हिंदुस्तानियों से मिले और 6 से 7 दिन बिताने के बाद एक पत्र के आदेश पर जो कि अब्दुल्ला खान के लिए था महात्मा गांधी को वकील के तौर पर सेठ ने प्रथम श्रेणी के टिकट से प्रीटोरिया जाने को कहा और वे डरबन नटाल के ट्रेन से प्रिटोरिया के लिए बैठे
मैरिटबर्ग घटना – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
जब वे डरबन के प्रिटोरिया जाते हुए ट्रेन में बैठे तो नेपाल की राजधानी मेरिटबर्ग मैं गांधी के साथ एक घटना हुई।
गांधीजी प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठे क्योंकि उन्होंने प्रथम श्रेणी का टिकट खरीदा था। विशेष व्यक्तियों के डिब्बे में बैठे वहीं पर एक अधिकारी ने गांधी को डिब्बे को बदलने के लिए कहा और आखरी डिब्बे में जाने को कहा
गांधी ने स्वयं उतरने को मना कर दिया फिर एक सिपाही ने गांधी को धक्का देकर नीचे उतार दिया गांधी ने दूसरे डिब्बे में जाने से इंकार कर दिया।
गांधी ने आत्मसम्मान को ठेस पहुंची और गांधी ने उस समय इस महा रोग जो कि रंग द्वेष के बारे में सोचा और अपने मन में सोचा कि अगर मुझे यह रोग मिटाने की शक्ति हो तो मैं इसका उपयोग जरूर करूंगा।
फिर वे दूसरी ट्रेन में जाने के लिए तैयार हुए और दूसरी ट्रेन में बैठे यहीं से उनकी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा प्रारंभ हो जाती है।
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मुकदमे की तैयारी – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
गांधी किसी भी केस को लड़ने से पहले उसके तथ्य पर ज्यादा जोर देते थे और सच्चाई पर भरोसा रखते थे। गांधी को पता चल गया था कि उनका पलड़ा भारी है और वह केस जीत जायेंगे।
परंतु इसमें समय बहुत लगता पर गांधी ने पंच द्वारा इस केस को निपटाने का निश्चित किया और बाद में भी केस जीते भी।
उन्होंने हाथीखाना को कि हर आने के बाद भी रियायत दी किस्तों में 40000 देने का वादा दिलवाया।
मध्यम चरण के गांधीजी के संघर्ष (1894 से 1906) – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
गांधी इस चरण में उदारवादी नीति से विरोध प्रदर्शन करते थे जैसे गांधी की पिटिशन डालते थे, मेमोरियल डालते थे और केस फाइल करते थे।
ब्रिटिश अथॉरिटी को किसी भी प्रकार का आंदोलन नहीं करते थे हिंसक नहीं होते थे और किसी भी प्रकार का विरोध प्रदर्शन नहीं करते थे और किसी भी प्रकार की हिंसक रणनीति को नहीं अपनाते थे।
प्रथम आंदोलन – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
जब भी अपना 1 वर्ष का समय अफ्रीका में बिता चुके थे और भारत वापस जा रहे थे तब उनकी नजर अखबार पर पड़ी और उन्होंने देखा कि अपनी काम हिंदुस्तानियों का मताधिकार समाप्त होने वाला है और विधायक नटाल की संसद में पास होने वाला है
फिर भी अफ्रीका में ही रुक गए और इसका विरोध करने लगे उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं से,लेख से, जनसभाएं और कई जनसत्ता अभियान किए परंतु यह सब असफल रहा और विधेयक पास हो गया। पर गांधी ने एक संगठन बनाने का सोचा और विरोध प्रदर्शन शुरू करना को कहा।
नटाल इंडिया कांग्रेस (1894) – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
दादा अब्दुल्ला खान के घर पर एक बैठक हुई और यह निश्चित हुआ कि एक संगठन बनाया जाएगा जिसका नाम नटाल इंडिया कांग्रेस रखा जाएगा। इसका नाम दादा भाई नौरोजी के सम्मान में रखा गया जिसका नाम नटाल इंडियन कांग्रेस था जिसकी सदस्यता शुल्क 3 पौंड वार्षिक रखी गई।
गिरमिटिया मजदूर आंदोलन – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
गिरमिटिया मजदूर वह मजदूर होते हैं जो अंग्रेज भारत से अफ्रीका 5 साल के लिए काम करने ले जाते थे और एक एग्रीमेंट के तहत अफ्रीका जाते थे और काम करते थे ज्यादातर गन्ना की खेती करने के लिए ही अफ़्रीका जाया करते थे।
जब 5 साल के बाद जो मजदूर काम करने के बाद एग्रीमेंट से मुक्त हो जाते और अपना व्यवसाय चालू करते और धन कमाने की कोशिश किया करते थे।
इससे अंग्रेजों का बहुत नुकसान और उन्हें बहुत दुख होने लगा और क्योंकि भारतीय लोग धीरे-धीरे मजदूर से मालिक बनते जा रहे थे जो अंग्रेजों को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
इसको रोकने के लिए उन्होंने भारतीयों पर 3 पौंड का कर लगा दिया और उसके बाद महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन किया। यह आंदोलन काफी लंबे समय तक चला और 1909 में जाकर 3 पौंड का कर समाप्त हुआ और साथ-साथ 1917 में गिरमिटिया प्रथा भी समाप्त हो गई।
बोर युद्ध – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
बोर शब्द डच लोगों के लिए इस्तेमाल में लिया जाता है। अफ्रीका में डच सबसे पहले आए और फिर अंग्रेज आए तो अंग्रेजों के पास नटाल और केब कॉलोनी थी और डचों के पास ऑरेंज फ्री स्टेट और ट्रांसवर्ल्ड था।
ट्रांसफर में सोने की खान मिलने लगी जिसको लेकर अंग्रेजों और डच के बीच युद्ध हो गया और महात्मा गांधी ने अंग्रेजों का साथ दिया और भारतीयों का अंग्रेजी सेना में शामिल कियालगभग उन्होंने 1100 भारतीयों को अंग्रेजी सेना में शामिल किया।
उस समय महात्मा गांधी जी का विचार था कि हम अंग्रेज की प्रजा है और अंग्रेज हमारे राजा और हमारा कर्तव्य अंग्रेजों की सहायता करने का है और अंग्रेज लोग बोर युद्ध जीत गए और जनरल ने बोर पदक बांटे परंतु बाद में गांधी जी यह विचारधारा टूट गई और वे 1902 में भारत आए और 1902 में भी वापस अफ्रीका चले गए
क्योंकि युद्ध में भारतीय लोगों के घर और संपत्ति की हानि हुई और घरों से बाहर हो गए थे भारतीय लोग जिसके द्वारा उन्हें बहुत सामना करना पड़ा कठिनाइयों का।
पुणे बचने के लिए एशियाटिक विभाग में अनुमति लेनी पड़ती थी जो कि चैंबर्लिन के सामने यह सारी बात रखी गई परंतु कोई हल नहीं निकला और यह विधेयक 1960 में पास हो गया और महात्मा गांधी की विचारधारा टूट गई।
निष्क्रिय प्रतिरोध या सत्याग्रह का चरण – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
इस चरण में निष्क्रिय प्रतिरोध यह सविनय अवज्ञा पद्धति का उपयोग किया गया महात्मा गांधी जी के द्वारा इस इस युग में गांधी जी ने सत्याग्रह का इस्तेमाल किया और इस को गांधी जी ने सत्याग्रह नाम दिया तो।
फिनिक्स आश्रम – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
फिनिक्स नाम के पक्षी के नाम पर है आश्रम का नाम रखा गया यह माना जाता है कि यह पक्षी अमर है और उसी तरह गांधी का यह आश्रम भी अमर रहेगा इस आश्रम में शिक्षा ,स्वावलंबन, सत्य , अहिंसा, सत्याग्रह और चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जाती है।
इंडियन ओपिनियन – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
यह पत्रिका 4 भाषाओं में प्रकाशित होती थी हिंदी, तमिल, गुजराती और अंग्रेजी भाषा में। श्रमदान और सहयोग से यह पत्रिका को प्रकाशित किया जाता था जिसमें मनसुखलाल इसके संपादक थे और मुख्य संपादक गांधीजी और सलाह मित्र मदन जीत थे।
प्रथम सत्याग्रह – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
जब 1907 में एशियाटिक पंजीकरण विधेयक पास हो गया था महात्मा गांधी ने अपनी उदारवादी विचारधारा को त्याग कर सत्याग्रह का मार्ग अपनाया।
इस अधिनियम में सभी भारतीयों को एक प्रकार का दस्तावेज रखने की आवश्यकता थी जिसमें उनके फिंगरप्रिंट होते थे। गांधी ने ऐसा करने से मना किया और एक सत्याग्रह चलाया इसके लिए गांधी को और अन्य सत्याग्रह को जेल में डाला गया 1908 से 1909 में और तीसरी बार में जेल गए।
जनरल स्मार्ट ने वादा किया कि अगर भारतीय श्रम पंजीकरण करेंगे तो वह यह अधिनियम रद्द कर देंगे बाद में इस पर अपने वादे से पलट गए और इस अधिनियम को निरस्त करने से इंकार कर दिया।
1909 में वे लंदन गए और 1909 में भी अफ्रीका लौट आए और 1914 में यह अधिनियम जो कि ब्लैक एक्ट के रूप में जाना जाता था उसे निरस्त किया गया।
हिंद स्वराज 1909 से 1910 – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
जब मैं 1909 में लंदन से अफ़्रीका वापस आ रहे थे तब उन्होंने यह पुस्तक रास्ते में गुजराती में लिखी। इस पुस्तक में गांधी ने कहा है कि भारत का संचालन आजादी के बाद इस पुस्तक के हिसाब से हो परंतु बाकी नेताओं से सहमति नहीं बन पाई वे चाहते थे कि गांव पर ज्यादा देश आधारित और गांव में देश चलाया जाए।
टॉलस्टॉय फार्म (1910) – गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा
यह गांधी ने जोहांसबर्ग में 10000 एकड़ की जमीन पर बनवाया था हरमन कालीनवॉक ने अपनी जमीन गांधी को दी थी फार्म के लिए इसका नाम रूसी दार्शनिक टॉलस्टॉय के नाम पर रखा गया है।
भारत वापसी
9 जनवरी 1915 को गांधी एसएस सुधीर जहाज से मुंबई के अपोलो बंदरगाह पर उतरे और उनका स्वागत किया गया।