Auguste Comte Law of Three stages in Hindi | चिंतन का त्रिस्तरीय नियम
Law of three stages in hindi | चिंतन का त्रिस्तरीय नियम
(1798-1857)
“सामाजिक विचारधारा का व्यवस्थित वैज्ञानिक रूप 19वीं शताब्दी में देखने को मिलता है ।और इसकी प्रथम संगठित नींव का श्रेय फ्रांसीसी दार्शनिक तथा समाजशास्त्री ‘ आगस्त कॉम्ट’ को ही जाता है।
19वीं शताब्दी के प्रमुख विचारको में अग्रणी आगस्त कॉम्ट का जन्म 19 जनवरी,सन् 1798 में फ्राँस के मॉण्ट पेलियर नामक स्थान में एक कैथोलिक परिवार में हुआ था।
कॉम्ट ही सर्वप्रथम सामाजिक विचारक थे जिन्होने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन क्षेत्र से कल्पना या अटकलपूर्ण विचारो को दृढ़ता से निकाल फेंककर उसे वैज्ञानिक तथ्यों से सींचा। आगस्त कॉम्ट समाजशास्त्र के जनक’ कहे जाते है।” .
चिंतन का त्रिस्तरीय नियम (Law of three stages of thinking in hindi)
आगस्त कॉम्ट के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का स्वतंत्र अध्ययन करने वाला विषय है।
किन्तु इस समाज का विकास कैसे हुआ इस संदर्भ में कॉम्ट में एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसे ‘चिन्तन का त्रिस्तरीय सिद्धान्त’ कहते हैं।
क्योंकि कॉम्ट के समाज के विकास का आधार बौद्विक विकास था इसलिये इसे · बौद्धिक विकास का नियम’ भी कहते है। कॉम्ट के अनुसार जब से धरती पर मानव आयें तब से समाज भी आया। जिस प्रकार आदिमानव ने कई स्तरों में सभ्य मानव तक का सफर तय किया उसी प्रकार समाज का विकास भी कई स्तरों में हुआ है।
आगस्त कॉस्ट ने समाज के विकास के तीन स्तरों को प्रतिपादित किया जिसे चिंतन का विस्तरीय नियम कहते हैं।
चिंतन के तीन स्तर | Law of three stages of Auguste Comte in hindi
आगस्त कॉम्ट ने समाज के विकास के पहले स्तर को ‘धार्मिक स्तर का समाज’ कहा। इसे धार्मिक स्तर का समाज इसलिये कहा जाता है।
क्योंकि इस समाज में रहने वाले व्यक्तियों का बौद्धिक विकास बहुत कम था इसलिये समाज में घटने वाली प्रत्येक घटना का कारण वे धर्म या ईश्वर को मानते थे इसलिए इसे धार्मिक स्तर का समाज कहा गया।
चूंकि बुद्धि का विकास धीरे- धीरे कई स्तरों में होता है इसलिये धार्मिक स्तर के समाज का भी विकास कई उपस्तरों में हुआ।
- जीवित सत्तावाद
- अवतारवाद
- बहुदेववाद
- एकेश्वरवाद
धार्मिक स्तर का पहला उपस्तर आया जहाँ व्यक्ति का बौद्विक विकास नगण्य था। उस समय मानव किसी भी घटना का कारण जीवितसत्ता या अदृश्यसत्ता को मान लेता था इसका कारण इस उपस्तर को कॉम्ट ने जीवितसत्तावाद या अदृश्यसत्तावाद (Feticism) कहा।
जब व्यक्ति की बुद्धि का विकास थोड़ा और अधिक हुआ उसकी आवश्यकता बढ़ी तो समाज के विकास का दूसरा उपस्तर आया जिसे ‘अवतारवाद का युग”’ (Anthroneorphism) कहा जाता है। जब मानव की बुद्धि का विकास और हुआ तो उसने अपने आसपास अपने से भिन्न वस्तुओं को देखा और उन वस्तुओ को अदृश्यसत्ता का.अवतार माना।
जब मानव की बुद्धि का विकास और अधिक हुआ तो उसमे नैतिकता का विकास हुआ। मनुष्य ने .. यौन
स्वेच्छाचारिता जैसे अनैतिक नियमों का त्याग किया और कुछ नैतिक नियमों का विकास किया और
स्वेच्छाचारिता जैसे अनैतिक नियमों का त्याग किया और कुछ नैतिक नियमों का विकास किया और
समूह, परिवार बनाकर रहने लगा और सभी समूहों को लोग अपने अलग-अलग देवता बनाकर उनकी पूजा .’ करने लगे और अनेक देवताओं का निर्माण हुआ इसलिये इस उपस्तर को ‘बहुदेववादः (Polythism):
कहा जाता है
जब मनुष्य की बुद्धि का विकास और अधिक हुआ तब वह मानने लगा ईश्वर एक ही है वही ईश्वर ही समाज में घटने वाली घटनाओं का कारण है इसलिये इस चौथे उपस्तर को एकेश्वरवाद (monothism) कहा गया। यह धार्मिक स्तर की चरम सीमा थी क्योंकि व्यक्ति यहाँ घटने वाली घटनाओं को ईश्वर से जोडता था और यही समाज के विकास का पहला स्तर था।
जैसे ही व्यक्ति का बौद्धिक विकास और अधिक हुआ तो वह तर्क वितर्क करने लगा। वह अब किसी घटना का कारण सीधे ईश्वर को नही मानता था परन्तु उसकी बुद्धि का विकास इतना नही हुआ था कि वह घटना के कार्य कारण को समझ पायें इसलिये पुनः वह हारकर ईश्वर को ही घटना का कारण समझ लेता था।
इस दूसरे स्तर को तात्विक स्तर’ या meraphysical कहते हैं। क्योंकि यहाँ धर्म और विज्ञान दोनो की विशेषताए पाई जाती है इसलिए इसे संक्रमण कालीन समाज भी कहा जाता है।
इस दूसरे स्तर को तात्विक स्तर’ या meraphysical कहते हैं। क्योंकि यहाँ धर्म और विज्ञान दोनो की विशेषताए पाई जाती है इसलिए इसे संक्रमण कालीन समाज भी कहा जाता है।
जब व्यक्ति की बुद्धि का विकास और हो गया तो वह घटनाओं के कार्यकारण संबंधों की व्याख्या करने लगा तब वह धर्म की सत्ता को अस्वीकार कर देने लगा और घटना का मूल कारण घटना के कार्यकारण को मानने लगा और वैज्ञानिक अध्ययन करने लगा। इसे विज्ञानवाद कहा गया। कॉम्ट ने इसे ‘प्रत्यक्षवादी स्तर का समाज कहा। प्रत्यक्षवाद में अध्ययन कई पद्वतियों के माध्यम से किया जाता हैं।