बिग बैंग परिकल्पना (Big Bang Parikalpana)

बिग बैंग परिकल्पना (Big Bang Parikalpana)

बिग बैंग परिकल्पना या विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना

आरंभ में सभी पदार्थ, जिनसे ब्रम्हांड बना है, अति छोटे गोलक ( एकाकी प्रमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था । बिग बैंग की इस प्रक्रिया में इस अति सूक्ष्म गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार के विस्फोट प्रक्रिया से वृहत विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग वर्तमान से 13.7 अरब साल पहले हुई था । जिसका विस्तार आज भी जारी है। विस्फोट के एक सेकंड अल्पांश के भीतर ही इसका तेजी से विस्तार हुआ इसके पश्चात इसका विस्तार धीमा हो गया। बिग बैंक से 3 लाख वर्षों के दौरान तापमान 4500 डिग्री केल्विन तक गिर गया और परमाण्विक पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रम्हांड पारदर्शी हो गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि हालांकि आकाशगंगाओं के बीच अंतरिक्ष बढ़ रहा है, लेकिन प्रेक्षण आकाशगंगाओं के विस्तार का समर्थन नहीं करते।

तारों का निर्माण

माना जाता है कि तारों का निर्माण करीब 5-6 अरब साल पहले हुआ था । निहारिका बढ़ती निहारिका गैस के समूह विकसित करती है जो बढ़ते बढ़ते सघन गैसीय पिंड में विकसित हुए, जिससे अंततः तारों का निर्माण हुआ। एक आकाशगंगा में बड़ी संख्या में तारे होते हैं। आकाशगंगाएं विशाल दूरी तक फैली हुई हैं जिन्हें हजारों प्रकाश वर्षों में मापा जाता है। प्रकाश वर्ष दूरी की माप है समय का नहीं ।

नक्षत्र

नक्षत्र तारों के विभिन्न समूहों द्वारा गठित विभिन्न आकृतियां हैं। उदाहरण: अर्सा मेजर या बिग बीयर सप्तऋषि सात तारों का समूह है जो बड़े अर्सा मेजर नक्षत्र का एक हिस्सा है। प्राचीन काल में लोग तारों की मदद से रात के समय दिशाओं का निर्धारण करते थे।

उत्तर सितारा (ध्रुव तारा ) उत्तर दिशा को इंगित करता है। इसे ध्रुव तारा भी कहा जाता है।  यह हमेशा आकाश में एक ही स्थिति में रहता है। हम सप्तऋषि की मदद से ध्रुव तारे की स्थिति का पता लगा सकते हैं।

सौर मंडल

क्षुद्र ग्रह

क्षुद्रग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करने वाले सौर परिवार की छोटी चट्टानी वस्तुओं का एक समूह है। उन्हें प्लैनेटॉइड भी कहा गया है, खासकर बड़े गोले को। ये मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं। सबसे बड़ा क्षुद्रग्रह सायरस है। वैज्ञानिकों का मानना है कि क्षुद्रग्रह ग्रह के हिस्से हैं जो कई साल पहले विस्फोट के दौरान टूट कर अलग हो गए थे। उल्का (मैट्योर), उल्का पिंड (मेट्रॉयड) तथा उल्का पिंड अवशेष (मेट्राइट) में क्या अंतर है? वे सभी कई बार आकाश में लकीर की तरह दिखते ( शूटिंग स्टार) प्रकाश की चमक से संबंधित है। लेकिन हम एक ही वस्तु को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, यह नाम इस बात पर निर्भर करता है कि यह कहां स्थित है। उल्कापिंड अंतरिक्ष में ऐसी वस्तुएं हैं जो धूल के कण से लेकर छोटे क्षुद्रग्रहों तक के आकार में होती

हैं। इन्हें आप “अंतरिक्ष चट्टानों’ के रूप में सोच सकते

हैं।

जब उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल ( या मंगल ग्रह की तरह किसी अन्य ग्रह की) में उच्च गति से प्रवेश करते हैं और जलने लग जाते हैं, तो उस आग के गोले या “शूटिंग स्टार्स को उल्का कहा जाता है। जब एक उल्कापिंड वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात पूरी तरह से नहीं जल पाता तथा वह पृथ्वी से टकराता है, तब उसे उल्कापिंड अवशेष कहा जाता

धूमकेतु

धूमकेतु सौरमण्डलीय निकाय है जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है। यह ग्रहो के समान सूर्य की परिक्रमा करते है।जब वे जमे हुए होते हैं तब वे एक छोटे से शहर के आकार के होते हैं।जब एक धूमकेतु की कक्षा इसे सूर्य के करीब लाती है तब यह गर्म होता है तथा यह धूल और गैस उगलते एक विशाल चमकीले सिर में बदल जाता है जो ग्रहों से भी बड़ा होता है।धूल और गैसें एक पूंछ बनाती हैं जो सूर्य से दूर लाखों मील तक फैली होती है।संभावना है की कुइपर बेल्ट और इससे भी अधिक दूर ओर्ट बादलों में अरबों की संख्या में धूमकेतु हमारे सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

सूर्य

सूर्य सौर मंडल के केंद्र में एक तारा है । यह मुख्य रूप से गर्म गैसों से बना है। यह पृथ्वी पर जीवन के लिए ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह ऊर्जा सूर्य के हाइड्रोजन नाभिक में परमाणु संलयन से उत्पादित होती हैं। सौर हवाएं: सूर्य की परत जिसे कोरोना (सबसे बाहरी परत, सूर्य के प्रकाश के कारण छिपा हुआ है, जो सूर्यग्रहण में दिखाई देता है) कहते हैं; प्लाज्मा ( अत्यंत गर्म आवेशित कण) अंतःक्षेपण से सौर हवाएं उत्पन्न होती हैं।

सौर / तारकीय लपटें

यह एक तारे की चमक में एक नाटकीय वृद्धि है (तारे के वायुमंडल में संग्रहीत चुंबकीय ऊर्जा के कारण) । सूर्य- कलंक के आसपास सक्रिय क्षेत्रों में होते हैं। अकसर सौर लपटें सूर्य की बाहरी परत कोरोना से द्रव्यमान के अंतःक्षेपण के कारण उत्पन्न होती है। सौर लपटें विद्युत चुम्बकीय विकिरणों के साथ इलेक्ट्रॉनों, आयनों और परमाणुओं के बादलों को बाहर निकालती है।  इतनी बड़ी मात्रा में ऊर्जा के साथ बमबारी (जैसा कि प्रॉक्सिमा सेंटौरी में देखा गया है) वायुमंडल या महासागरों से पानी को वाष्पित कर सकती है तथा जमीन को बंजर बना सकती है।

जब पृथ्वी की दिशा में सौर लपटे बाहर निकलती हैं, तो इसके कण पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल से टकराने के बाद ऑरोरा / ध्रुवीय प्रकाश (ऑरोरा बोरियालिस / उत्तरी-प्रकाश और ऑरोरा ऑस्ट्रलिस / दक्षिणी-प्रकाश) के कारण बन सकते हैं।

एक्स-रे और पराबैंगनी किरणें आयनमंडल को प्रभावित कर सकती हैं और लंबी दूरी के रेडियो संचार को बाधित कर सकती हैं।

 सौर लपटों के द्वारा उत्पन्न विकिरण मानव युक्त अंतरिक्ष अभियानों के दौरान उत्पन्न होने वाले प्रमुख जोखिम पूर्ण बाधाओं में से एक हैं।

सूर्य- कलंक चक्र

सूर्य की सतह तक उठने वाले चुंबकीय प्रवाह (magnetic flux) की मात्रा चक्रीय रूप में बदलती रहती है जिसे सौर चक्र करते हैं। यह चक्र औसतन 11 साल तक रहता है और इसी औसत चक्र को हम सूर्य कलंक चक्र भी कहते हैं। सूर्य के धब्बे गहरे, चुंबकीय रूप से मजबूत, सूर्य की सतह पर ठंडे क्षेत्र होते हैं ( फोटो मंडल )। 

ग्रह

 पूरे सूर्य में नहीं, 25 डिग्री 30 डिग्री अक्षांश केबीच मौजूद यह सूर्य की दीर्घकालिक विविधताओं और पृथ्वी के जलवायु पर इसके प्रभाव को समझने में मदद करेगा (आदित्य एल-1 अभियान का उद्देश्य) ।

  1. इसे एक तारे की परिक्रमा (जैसे सूर्य का ) करना चाहिए
  1. उसका द्रव्यमान कम-से-कम इतना हो कि अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण उसका आकार लगभग गोल हो गया हो।
  1. यह इतना बड़ा होना चाहिए कि सूर्य के चारो ओर की इसकी कक्षा से इसी आकार के किसी दूसरे पदार्थ को दूर कर सके।

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