Auguste Comte/अगस्त कौंत Father of Sociology Full description in Hindi

Auguste Comte Father of Sociology Full description in Hindi

Auguste Comte Father of Sociology Full description in Hindi

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अगस्त कौंत प्रत्यक्षवाद के जनक थे उनकी निश्चित मान्यता थी सभी विषय समाज का अध्ययन करने वाले विषय भी प्रत्यक्ष वादी पद्धति से अध्ययन करें यह उनकी निश्चित मान्यता थी प्रत्यक्षवाद का अर्थ है प्रत्यक्ष अनुभव एवं अवलोकन से प्राप्त सूचनाओं से विषय वस्तु की व्याख्या करना।

समाज अन्य घटनाओं के समान प्राकृतिक एवं निश्चित नियमों से संचालित होता है। समाजशास्त्र का उद्देश्य एक प्रत्यक्षवाद विषय के रूप में इन नियमों का पता लगाना है एवं इनके आधार पर समाज का पुनर्निर्माण करना है।

कौंत तो विचार वादी थे उनके अनुसार समाज विचारों की प्रति छवि मात्र है HP bronze ने लिखा है जॉर्ज ही गेले इस तरह के विचार दर्शन के क्षेत्र में दिए वैसे ही विचार कौंत ने समाजशास्त्र में दिए समाजों का उद्विकास और प्रगति वास्तव में विचारों के उद्विकास का परिणाम है।

अगस्त को इतने कोजर के अनुसार एक और प्रगति का सिद्धांत दिया है तो दूसरी ओर व्यवस्था यानी स्थिरता का भी सिद्धांत दिया है कौन थे हिंसा के विरोधी थे फ्रांसीसी क्रांति को उन्होंने जमकर कोसा जॉर्ज रीजनल लिखा कि अगस्त कौन फ्रांसीसी क्रांति की भावना एवं ज्ञानोदय के विचारों के घोर विरोधी थे।

कौंत समाजशास्त्र के जनक थे कौत 1838 में सोशलॉजी या समाजशास्त्र का नाम दिया समाजशास्त्र के जनक के रूप में अनेक विद्वानों का नाम लिया जाता है।

जैसे डेविड यू इत्यादि एंथोनी गिड्डेंस ने लिखा कि समाजशास्त्र के विकास में एक पूरी बौद्ध परंपरा लगी हुई थी कुंती को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि कौंत ने समाजशास्त्र को उसका नाम दिया एमाइल दुर्खीम समाजशास्त्र के पिता थे क्योंकि उन्होंने मनोविज्ञान एवं सामाजिक दर्शन से लगातार मत बाद के बाद समाजशास्त्र को स्थापित किया यह सही है कि एमाइल दुर्खीम के अलग एक धारा के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1892 में ही विधिवत समाजशास्त्र का शिक्षण आरंभ हो गया।

Auguste Comte/अगस्त कौंत Father of Sociology Full description in Hindi

जीवन

कौत का जन्म फ्रांस के शहर मोंतेप्लीयर में एक सरकारी कर्मचारी पिता के परिवार में 19 जनवरी 1798 को हुआ था।

उनके पिता धार्मिक एवं परंपरावादी व्यक्ति थे। वे फ्रांसीसी क्रांति को पसंद नहीं करते थे। काँत मेधावी थे। आरभिक शिक्षा के बाद इकॉल पोलीटेकनिक में प्रवेश के लिए ली गई प्रतियोगिता परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही सफल होने के बाद कौत को प्रवेश मिल गया।

इस संस्थान को फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस के तड़ित औद्योगिक विकास के लिए 1794 में खोला गया था। कांत ने इस संस्थान में गणित एवं रसायन विज्ञान के साथ-साथ दर्शन एवं इतिहास भी पढ़ा। उनके स्वतंत्र विचारों के कारण उन्हें इकॉल से निष्कासित कर दिया गया।

काँत की हार्दिक इच्छा थी कि वे शिक्षक बने पर पर ऐसा हो नहीं सका। वे इकॉल पोलीटेकनिक में परीक्षा विभाग के अधिकारी बन गए। इसके पहले वे निजी शिक्षक के रूप में गणित पढ़ाते रहे एवं जीविका के लिए कापियाँ भी जाँचते रहे। कौत 1817 से 1824 तक हेनरी डी सेंत साइमन के सचिव रहे।

घोषित रूप से इनमें कभी अच्छे संबंध नहीं रहे. अघोषित रूप से कौंत ने संत साइमन की अनेक बातों को अपना लिया। दोनों के दृष्टिकोण एवं विचारधारा अलग थी परंतु दोनों फ्रांसीसी क्रांति के कंपन को तब भी महसस कर रहे थे। यह अलग बात है कि इस कंपन ने दोनों में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया। साइमन वर्ग संघर्ष के समर्थक थे।

फ्रांसीसी क्राति एवं ज्ञानोदय के विचारों से प्रेरित थे। कौंत व्यवस्था एवं शांति के समर्थक थे। फ्रांसीसी क्रांति को उन्होंने निरर्थक खन-खराबा कहा एवं ज्ञानोदय के समुद्र से वे केवल प्रत्यक्षवाद का मोती हो निकाल सके। सेंत साइमन समाजवाद के समर्थक थे। कार्ल मार्क्स ने सेंत साइमन से ही समाजवाद के बारे में जाना था। अगस्त कौत पूँजीवाद के समर्थक थे। उद्योगपतियों को यानी उद्योग के कप्तानों को उन्होंने प्रत्यक्षवादी समाज का कप्तान कहा है।

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आर्थिक-राजनैतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि

कौंत निश्चित रूप से फ्रांस में झंझावातों के काल में पैदा हुए थे। फ्रॉस से पहले इंग्लैंड में उद्योग एवं पूँजीवाद का विकास आरंभ हो चुका था।

फ्रांस में पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड के आगे निकल जाने के कारण, उद्योग और पूँजीवाद तेजी से आरंभ हुआ। इससे परिवर्तन एवं उठापटक भी तेज हुई। अगस्त कौंत अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण फ्रांसीसी क्रांति एवं ज्ञानोदय की भावना के विरुद्ध थे। इसीलिए वे तत्काल शांति एवं शृंखला चाहते थे।

इंग्लैंड में भी बहुत अधिक राजनैतिक अस्थिरता हुई थी परंतु इंग्लैंड के तत्कालीन शासक वर्ग यानी सामंत, पुरोहित एवं व्यापारियों ने उभरते हए पूँजीपति, इंजीनियरों, वकीलों, बुद्धिजीवियों को सत्ता में थोड़ा सा हिस्सा दिया। इंग्लैंड के शासक वर्ग ने कल्पनाशीलता का प्रदर्शन किया।
फ्रांस के शासक अकल्पनाशील थे एवं पुरानी शासन व्यवस्था के गौरव के खुमार में थे। इसलिए उन्होंने उद्योग एवं पूँजीवाद के बढ़ते प्रभाव का विरोध किया। इससे झगड़े और बढ़ गए। क्रांति का पुत्र नेपोलियन क्रांति के परिणाम यानी गणतंत्र को समाप्त कर स्वयं सम्राट बन गया।

यूरोप के समाज में क्रांति आ गई थी। सामंती समाज के गर्भ से पूँजीवादी समाज का जन्म हो रहा था। सामंत और जमींदार, पुरोहित और पूजारी इस परिवर्तन को जी जान से रोकने की कोशिश कर रहे थे।

यूरोप के दूसरे देशों के समान फ्राँस में भी पूँजीपति वर्ग और पढ़ा लिखा मध्यवर्ग सामने आ रहा था। कौंत इन पूँजीपतियों एवं उनके दंभी तेवर को पसंद नहीं करते थे।

वे मानवतावादी पूँजीवाद, उदारवाद एवं समन्वयवादी समाज के समर्थक थे। इसके विपरीत फ्रॉस के पूँजीपति प्रयास, प्रतियोगिता एवं चुनौती के समर्थक थे। ज्ञानोदय के विचारों ने जिसमें विज्ञान, व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं प्राकृतिक नियमों को तरजीह दी गई थी, ने पूँजीपतियों एवं मध्यवर्ग के समूहों को प्रेरणा प्रदान की।

पुराने सामंत फ्रांस में मौजूद थे परंतु उनकी सत्ता की ख्वाहिशें ही बची थीं, सत्ता पर कब्जे की उनकी क्षमता चूक गई थी। उनकी जीवन शैली विलासपूर्ण थी। वे पुराने दिनों की याद में अपनी जिंदगी गुजार रहे थे।

पुरोहित और पुजारी भी बेचैन थे। कौंत के पिता एवं स्वयं कौंत को भी इस बात का गम था कि क्रांतिकारियों ने कैथोलिक पुरोहितों के साथ बड़ा बुरा बर्ताव किया था। इसके बावजूद पुरोहित एवं पुजारी कैथोलिक धर्म की, सामंतों के साथ सत्ता में वापसी और उसके गौरव की इच्छा रखते थे।

डी मास्त्रे एवं डी वैसील जैसे विद्वानों ने इनका खूब समर्थन किया एवं इनके पुनर्जीवन का बौद्धिक प्रयास किया। कौंत ने यह समझ लिया कि पुराने दिन वापस नहीं आ सकते हैं। इसलिए उन्होंने ज्ञानोदय के कम से कम एक अंश युक्तिपूर्णता एवं इसके परिवर्धित रूप विज्ञान को अपना लिया।

संपूर्ण यूरोप में, परंतु समान रूप से नहीं राजनीति में लोकतंत्र के अंकुर फूटने लगे थे। सामंत एवं पुरोहित इस नए बिरवा को मारने में लगे थे।

मेटेरनिक के द्वारा वियना काँग्रेस का आयोजन ऐसा ही प्रयास था। परंतु पूँजीवाद और लोकतंत्र की शक्तियाँ नई थीं एवं इनकी जीवनी शक्ति भरपूर थी।

प्राकृतिक कानून की धारणा और कानून का शासन अपने को स्थापित करने में लगे थे। अगस्त कौंत गणतंत्र के समर्थक थे परंतु गणतंत्र की गहमा-गहमी उन्हें पसंद नहीं थी।

समाजशास्त्र को उन्होंने माता रूपी और छातारूपी विज्ञान कहा है। टालकट पारसन्स ने कौत की आलोचना इस बात के लिए की कि जब काँत समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान आदि में अंतर कर सकते थे एवं इसकी सामग्री और आधार भी मौजूद थे तब भी उन्होंने ऐसा नहीं किया।

कौत एक मानवतावादी थे। बहुतों ने उन्हें मानवता का महान पुजारी कहा है। प्राकृतिक विज्ञानों की शिक्षा के कारण उन्होंने विज्ञान की वास्तविकता एवं शक्ति को तो स्वीकार कर लिया परंतु पारंपरिक सामंती समाज को रूमानीयत से वे उबर नहीं पाए।

वे समाज एवं समूह को व्यक्ति की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने परिवार को संवेदनापूर्ण संबंधों का स्रोत कहा। इस मामले में वे हर्बर्ट स्पेंसर से एकदम भिन थे। स्पेंसर व्यक्तिवाद के समर्थक थे। व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं संपूर्ण तथा स्वतंत्र प्रतियोगिता (aissez faire) के समर्थक थे।

कौत ने संभवत: इसी कारण से सामाजिक उद्विकास की धारणा को स्वीकार करते हुए भी सामाजिक प्रगति की कल्पना की, एक ऐसे प्रत्यक्षवादी समाज को कल्पना को जिसमें मानवता होगी, सहयोग होगा एवं मानवीय भावनाओं का वर्चस्व होगा। इसीलिए वे समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक धर्म कहते हैं।

काँत के ऐसे विचारों के कारण उनके अन्य विचारों से प्रभावित इटली के समाजशास्त्रविल्फ्रेडो पैरेटो भी बिदक गए।

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