Alcoholism meaning in Hindi | मद्यपान का अर्थ , परिभाष एवं विशेषता
मद्यपान से शारीरिक क्षमता कम होती है तथा अनेक प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। परिवार के स्तर पर मद्यपान पारिवारिक विघटन को प्रोत्साहन देता है तथा महिलाओं पर अत्याचार में वृद्धि करता है। सामुदायिक स्तर पर भी मद्यपान की काफी सामाजिक एवं आर्थिक कीमत चुकानी पड़ती है।
दुर्घटनाएँ एवं मृत्यु, मानव शक्ति अपव्यय, अपराध में वृद्धि तथा सामाजिक सुरक्षा, उपचार एवं पुनर्वास के लिए अधिक धन का व्यय ऐसे दुष्परिणाम हैं जो मद्यपान के कारण पनपते हैं। इसीलिए समाजशास्त्र में सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में मद्यपान को सम्मिलित किया जाता है। इस इकाई का उद्देश्य मद्यपान के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करना है।
Alcoholism in Hindi
Alcoholism एवं मादक द्रव्य व्यसन ऐसी सामाजिक समस्याएँ हैं जो आज सभी देशों में चिन्ता का विषय बनी हुई हैं क्योंकि इनसे तीनों ही प्रकार के विघटनों—वैयक्तिक विघटन, पारिवारिक विघटन तथा सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन मिलता है।
इन्हें मुख्य रूप से वैयक्तिक विघटन के रूप में देखा गया है। भारत में मद्यपान एवं मादक द्रव्य व्यसन का प्रयोग इतना अधिक बढ़ गया है कि यह खतरा पैदा हो गया है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत इन पदार्थों का सेवन करने वाला सबसे पहला और बड़ा देश बन जाएगा। एक अनुमान के अनुसार केवल दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता तथा चेन्नई में जहरीली दवाओं की लाखों रुपये की खुदरा बिक्री रोज होती है।
अकेले मुम्बई में एक लाख से अधिक नसेड़ी हैं और देश में हर वर्ष 50 हजार की दर से नसेड़ियों की वृद्धि हो रही है। इससे भारत में मद्यपान की समस्या की गम्भीरता का पता चलता है।
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मद्यपान कोई नई बात नहीं है क्योंकि इसका प्रचलन आदिकाल से ही संसार के प्रत्येक देश में विविध रूपों में होता आया है। मद्यपान यद्यपि करता तो एक व्यक्ति है परन्तु इसे सामाजिक समस्या इसलिए कहा जाता है क्योंकि इससे वैयक्तिक विघटन के अतिरिक्त पारिवारिक विघटन एवं सामाजिक विघटन भी होते हैं।
मद्यपान एक सामाजिक समस्या तब समझी जाती है, जबकि अत्यधिक मदिरा का उपयोग करके व्यक्ति व्यभिचारी या अपराधी कार्यों को करने लगता है। इतना ही नहीं, तलाक, पलायन, आत्महत्या, अपराध, कलह, भ्रष्टाचार, दुर्घटना व नैतिक पतन जैसी अनेक समस्याएँ इसके साथ जुड़ी हुई हैं। इसलिए इस समस्या का समाजशास्त्रीय दृष्टि से अध्ययन विशेष महत्त्व रखता है।
अत्यधिक अथवा आदतन मद्यपान का व्यक्ति के मूल्यों, मनोवृत्तियों, स्वास्थ्य तथा जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को समाजशास्त्रीय दृष्टि से देखने का प्रयल किया जाता है क्योंकि मद्यपान करने वाला व्यक्ति परिवार तथा समुदाय का भी सदस्य होता है। इसलिए इससे समाज की यह महत्त्वपूर्ण इकाइयाँ भी प्रभावित होती है। संसार में लाखों पुरुष तथा स्त्रियाँ आज ऐसी स्थिति में पहुंच चुके हैं जहाँ मद्यपान उनकी एक मूल आवश्यकता बन गया है।
क्या है मद्यपान
आज समाज में मद्यपान ही एक समस्या नहीं है अपितु अन्य नशीले द्रव्यों (जैसे अफीम, गांजा, चरस, कोकीन, भांग, एल० एस० डी० अन्य नशा उत्पन्न करने वाली दवाएँ व जड़ी बूटियाँ इत्यादि) का प्रयोग इतनी अधिक मात्रा में होने लगा है कि प्रत्येक समाज में मादक द्रव्य व्यसन एक चिन्ता का विषय बना हुआ है।
अमेरिका, यूरोप तथा एशिया के अनेक देश इससे प्रभावित है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि अगर एक बार इस प्रकार के मादक द्रव्य व्यसन की व्यक्ति को आदत पड़ जाती है तो इसे छोड़ना बहुत कठिन होता है।
मादक द्रव्य व्यसन व्यक्ति की वह स्थिति है जिसमें नह किसी औषधि का इतना अधिक सेवन करने लगता है कि वह सामान्य अवस्था में रहने के लिए भी उस पर आश्रित हो जाता है। अगर औषधि उसे नहीं मिलती तो वह बीमार सा अनुभव करता है। यह एक प्रकार से मादक द्रव्यों (नशीली दवाओं) के अत्यधिक सेवन की स्थिति है।
इलियट एवं मैरिल (Elliott and Merrill) ने उचित ही लिखा है कि मद्यपान का भी सामाजिक वितरण होता है। जटिल समाजों में विभिन्न समूहों को जिस प्रकार शिक्षा, व्यवसाय, धर्म, राष्ट्रीयता, प्रजाति इत्यादि कारकों द्वारा एक-दूसरे से अलग किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार इन समूहों में मद्यपान का उपयोग एक समान रूप से नहीं होता। वैयक्तिक असुरक्षा, जोकि एक समूह में पाई जाती है, जरूरी नहीं है कि वह किसी अन्य समूह में भी पाई जाए।
इसीलिए ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों तथा उन समुदायों के विभिन्न समूहों में इसका उपयोग एक समान नहीं होता है। कुछ समाजों में कम तेज मद्यपान का उपयोग किया जाता है।
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मद्यपान का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सरल शब्दों में मद्यपान का अर्थ मदिरा (शराब) का सेवन करना है।
जो व्यक्ति मदिरा का सेवन करता है उसे मद्यसेवी कहते हैं। फेयरचाइल्ड (Fairchild) ने मदिरा सेवन की असामान्य तथा बुरी आदत को मद्यपान कहा है। इलियट एवं मैरिल जैसे अनेक विद्वानों ने यह मत व्यक्त किया है कि अधिक मात्रा में मदिरा का सेवन ही मद्यपान कहलाता है। कभी-कभी अथवा बहुत कम मात्रा में शराब पीना मद्यपान नहीं है।
साथ ही, ऐसे विद्वानों ने मद्यपान को मदिरा सेवन की वह आदत बताया है जो मद्यसेवी की कमजोरी बन जाती है। वह मदिरा पर इतना अधिक आश्रित हो जाता है कि बिना उसके सेवन से उसे बेचैनी होने लगती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन निपुण समिति (World Health Organization Expert Committee) ने मद्यपान को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “मद्यपान नशे की वह दशा है जो किसी मादक पदार्थ के निरन्तर सेवन से पैदा होती है; जो कुछ देर तक या सदैव ही व्यक्ति को इस तरह नशे में चूर रखती है जो समाज और व्यक्ति दोनों के लिए हानिकारक होती है।
” इस संगठन के अनुसार मद्यसेवी से अभिप्राय अधिक नशा करने वाले उस व्यक्ति से है जिसकी मदिरा पर इतनी अधिक निर्भरता बढ़ जाती है कि इसके कारण व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य विगड़ने लगता है।
सन् 1964 में योजना आयोग द्वारा नियुक्त मद्यनिषेध पर स्टडी टीम की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। इस स्टडी टीम के अध्यक्ष पंजाब उच्च न्यायालय के निवर्तमान न्यायाधीश श्री टेकचनद थे। यह रिपोर्ट मद्यपान एवं मद्यनिषेध पर एक शास्त्रीय शोध ग्रन्थ माना जाता है। इस रिपोर्ट में मद्यपान की परिभाषा इन शब्दों में की गई थी, “मद्यपान से आशय एक बीमारी, आदत या व्यसन से है जो व्यक्ति की शारीरिक-मानसिक व्यवस्था के टूटने से पैदा होता है।
यह विघटन दीर्घकाल तक लगातार और आदतन मद्यपान के परिणामस्वरूप होता है।” इसी भाँति, मार्क कैलर (Mark Keller) के अनुसार, “मद्यपान एक ऐसा दीर्घकालिक व्यवहार-सम्बन्धी विकार है जिसमें व्यक्ति इतनी अधिक मात्रा में मदिरा सेवन करने लगता है कि उसकी मदिरा पीने की आदत उसके स्वास्थ्य तथा सामाजिक व आर्थिक कार्यों में हस्तक्षेप करने लगती है।”
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मद्यपान मदिरा सेवन की वह स्थिति है जो मद्यसेवी की आदत बन जाती है तथा जो उसके स्वास्थ्य और मानसिक जीवन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। यह मदिरा के किसी भी रूप में निरन्तर उपयोग से उत्पन्न पाक्षिक या शाश्वत नशे की स्थिति है जो व्यक्ति और समाज दोनों के लिए अहितकर होती है।
मद्यपान में मदिरा के साथसाथ उन पदार्थों का सेवन भी सम्मिलित है जो व्यक्ति में मादकता उत्पन्न करते हैं। इसीलिए किसी भी ऐसे पदार्थ का सेवन जो नशा पैदा करता है विस्तृत रूप से मद्यपान कहलाता है।
मद्यपान से आशय व्यक्ति की उस व्याधिकीय दशा से है जो उसके द्वारा नशीले पेयों के लगातार एवं अत्यधिक सेवन से उत्पन्न होती है। इस दशा में व्यक्ति मद्यपान की आदत का शिकार हो जाता है। वह मद्यपान के लिए स्वयं को बाध्य समझता है। एक मानसिक रोगी की भाँति, दिन-प्रतिदिन विकृतियों की ओर बढ़ता हुआ भी तथा मदिरा की चाह को छोड़ना चाहते हुए भी वह इसे नहीं छोड़ सकता।
मद्यपान अत्यधिक मदिरा व्यसन की स्थिति है जिसमें व्यक्ति मानसिक विकृति का शिकार होने के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से भी दरिद्र हो जाता है, सामाजिक प्रतिष्ठा खो बैठता है तथा नैतिक हास के कारण एक प्रकार से विवेकशून्य हो जाता है। अत: मद्यपान उन लोगों की समस्या नहीं है जो कभी-कभी खुशी या गम के अवसर पर थोड़ी-सी मदिरा पी लेते हैं और बातचीत व हँसी-मजाक करके खाना खाकर सो जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए मदिरा शारीरिक या मानसिक कमजोरी नहीं होती है।
मद्यपान की विशेषताएँ
1. मद्यपान अधिक मात्रा में मदिरा सेवन की आदत है।
2. मद्यपान की आदत में व्यक्ति मदिरापान करने के लिए अपनी विवशता प्रकट करता है।
3. मद्यपान व्यक्ति के लिए जीवन की वह स्थिति है जिससे मदिरा उसके जीवन के लिए एक समस्या बन जाती है और वह उसे आसानी से छोड़ नहीं पाता है।।
4 . यह आदत कभी-कभी अथवा अधिकांशतः मदिरा सेवन करने वाले व्यक्ति के व्यवहार और कार्यक्षमता में गम्भीर दोष उत्पन्न कर देती है। मद्यपान की स्थिति में व्यक्ति शारीरिक व संवेगात्मक नुकसान उठाता है।
4. मद्यपान एक मानसिक व शारीरिक बीमारी है जो अनेक प्रकार के रोगों और व्यवहार विवादों को जन्म देती है।
टेकचन्द स्टडी टीम ने मदिरासेवियों (मद्यसारिकों) की निम छह श्रेणियाँ बताई हैं
1. कभी-कभी पीने वाले,
2. संयत पीने वाले (एक सप्ताह में तीन बार),
3. अभ्यस्त, सामाजिक अथवा भोजन के साथ पीने वाले (हफ्ते में तीन बार से ज्यादा लेने वाले),
4. अधिक (Heavy) पीने वाले (वे लोग जो इतना पीते हैं कि घर, समाज या व्यापार में भी कठिनाई में पड़ जाते हैं परन्तु वे इसे स्वेच्छा से छोड़ सकते हैं),
5. व्यसनी पीने वाले (वे जो अपने आप मदिरा सेवन नहीं छोड़ सकते और जिन्हें उपचार की जरूरत है),
6. चिर-कालिक पीने वाले (वे लोग जो तन और मन से गिरावट की स्थिति में है)।